Sunday 13 May 2012

शीशे का सपना

[I wrote this song specially for http://www.ruvethefilm.com/.
The director figured the Hindi was too shuddha for his movie.]

देखा मैंने था एक ख्वाब-ए-तहलका,
रेगिस्तान के बीच शीश महल का;
रेत से उभारकर मैंने चित्र बनाया,
रंगों से भरकर चरित्र बनाया |

जब जाग उठे वे शीशों के स्तूप,
जकड़ गई उनमें सूरज की धूप;
कैद रोशनी ने रात दिन सा बनाया -
सूरज उस निशा सो नहीं पाया |

महल मेरा यूँ हीरों सा चमका,
सूरज की शोभा पर वोह आ धमका,
शीश के मेरे इस सपने पे गुस्साया,
जलता हुआ सूरज पृथ्वी पर आया..

गर्मी से महल में तबाही मचाई,
छोड़ गया वोह रेत सिर्फ जो सब थी रचाई:
कैनवस को मेरे वोह राख कर गया
और ख़्वाबों को मेरे वोह ख़ाक कर गया |

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