Thursday 31 March 2011

छोड़ आए हम वो गलियाँ

[I am on the verge of graduating. I may be leaving my home, my city, my country even, in the pursuit of greener pastures. But I must remember that it was here that made me who I am, and capable of what I could be.
This is my first attempt at Hindi poetry.]


छोड़ आए हम वो गलियाँ,
पर क्या उन्हें छोड़ना सही था?

उन गलियों में था खूब कचरा पड़ा,
रात को था कुत्तों का खतरा बड़ा;
क्या इन्हें हटाने का ज़िम्मा तुम्हारा नहीं था?

छोड़ आए हम वो गलियाँ,
पर क्या उन्हें छोड़ना सही था?

गलियों में फिरा करते हैं लफंगे,
बात-बात जो करते हैं दंगे;
न कुछ महीने पहले तू भी यही था?

छोड़ आए हम वो गलियाँ,
पर क्या उन्हें छोड़ना सही था?

इन गलियों के सहारे से हुआ तेरा सुधार,
अब उन्हें सुधारने का रहा तुझपे उधार;
देश को बदलने का मौका क्या ऐसा और कहीं था?

छोड़ आए हम वो गलियाँ,
पर क्या उन्हें छोड़ना सही था?


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